एक दिन मेरी जिन्दगी और लंबी हो गई,
जाने क्या थी चाहत जो जिन्दगी भी अदनी हो गई,
शुरुआत तो नेक थी, पर जाने कब नियत खोटी हो गई,
कुछ और, कुछ और कि चाहत में इंसानियत छोटी हो गई,
एक दिन मेरी जिन्दगी और लंबी हो गयी!
जाने यह मन क्यों हर मोड़ पर भटकता है,
बंद, टूटे जर्जर रास्तों पे भी दिल मचलता है,
क्या पता था कि जिन्दगी का एक स्याह रुप है,
सफ़र में धुंधली छांह है तो आगे कड़ी धुप है,
जाने किसकी तलाश में यह सफ़र आज और लंबी हो गई!
शायद यह प्रियजनों कि दुआओं का असर था,
या शायद, इस जिन्दगी कि खूबसूरती से मैं बेसब्र था,
कभी थे रंग, आरजू, तमन्नाएँ हमारी आंखों से जिंदा,
पर क्यों आज हर खुशियों को यह आँखें करती हैं शर्मिंदा,
शायद, आज इस सन्नाटे कि उमर उन खुशियों से लंबी हो गई!
एक दिन मेरी जिन्दगी और लंबी हो गयी!
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